*आध्यात्म की नगरी बनारस को देखा, तो लगा, यही तो है जीवन का सार,,,*

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*संतोष कुमार श्रीवास,* बिलासपुर मो 9098156126
बिलासपुर। इस वर्ष 2023 सामाजिक परिवारिक यात्रा बिलासपुर छत्तीसगढ़ से निकलकर मस्तूरी से होते हुए मां महामाया नगरी अंबिकापुर और उसके बाद हम पहुंचे सुबह-सुबह भोलेनाथ के स्थाई निवास बनारस में। बनारस नगरी नाम सुनते ही जैसे मन में अलग ही आस्था उत्पन्न हो जाती है, यह पावन नगरी कितनी पुरानी और धार्मिक है जिसकी कल्पना हम नहीं कर सकते है। पहले काशी फिर बनारस और फिर वाराणसी के नाम से इसे जाना जाता है। बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से यह नगरी महादेव की नगरी कही जाती है।
धर्म पुण्य का क्षेत्र है नगरी काशी धाम। दीप ज्योति के शहर का विदित हो नाम।
बड़े और पुराने शहर में जाम लगना आम बात है,,,हम भी इसका हिस्सा बने,, जहा सुबह 9 बजे बाबा का दर्शन होना था,,,शाम को 5 बजे मिला। शायद नियति को यही मंजूर था। कुछ समय का नुकसान के साथ फायदा ये भी हुआ की मां गंगा की आरती देखने का सुअवसर मिल गया। भाग्य ने साथ दिया,,,जमकर बारिश हुई नाव वाला आरती नहीं दिखाना चाहता था,,,लेकिन उतने पैसे में ही पूरे 84 घाट दिखाया और गंगा आरती भी कराया। नाव वाला ने प्रति व्यक्ति 180 रुपए लिये। माँ गंगा का पावन मोक्ष दायनी जल और शांत आनंदमयी घाट का अनुभव कितना मनमोहक होता है शायद मैं बयां नहीं कर सकता। बनारस की कुछ अलग ही रहस्य है जो हर शहर से भिन्न है, बनारस की साड़ियाँ, यहाँ का प्रसिद्ध पान, पुरानी विरासतों का शहर, विश्व विख्यात विश्वविद्यालय और भी बहुत कुछ जो बनारस को ख़ास बनाता है। तभी तो चंद्रशेखर गोस्वामी ने ठीक ही कहा है+
जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ, सब कहे मुझे मैं पारस हूँ
मेरा जन्म महा श्मशान मगर, मैं जिन्दा शहर बनारस हूँ.
यहाँ बाबा विश्वनाथ का दरबार है, यहाँ माँ गंगा की जय जयकार है, आध्यात्म की नगरी बनारस को देखा, तो लगा यही तो जीवन का सार है. चार साल पहले श्रमजीवी पत्रकार संघ के सम्मेलन में ठीक उसी दिन यहां पहुंचे थे जिस दिन चुनावी सभा को संबोधित करने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी आए थे। तब का विश्वनाथ मंदिर और आज का विश्वनाथ मंदिर,, एकदम बदल गया है, उस समय तंग गलियों से और बंदूक के साए में मस्जिद से होकर मंदिर तक पहुंचना मजबूरी था। आज पूरा स्वरूप ही बदल दिया है श्री मोदी जी ने। चार भव्य गेट, बड़े बड़े कारीडोर, साफ सफाई, ठंडे पानी, जगह जगह बाथरूम और सीधे गंगा जी से मंदिर तक कारीडोर,, चाक चौबंद व्यवस्था,,,इसके लिए दिल से मोदी, योगी का आभार,,,
*अयोध्या के कण कण में है राम लीला*
शाम को बनारस में खाना खा कर निकले अपने राम लल्ला के धाम, सरयू तट पर बसा है,,जिनका अयोध्या है नाम,,,रिमझिम रिमझिम बारिश के बीच सरयू मां के निर्मल जल में स्नान पूरे मन को एकाग्र और शुद्ध कर देती है और यहां से ही लोग राम मय होने लगते है,,,बड़े हनुमान, दशरथ महल के बाद उस स्थान पर पहुंचे जहा कण कण पावन धाम है जिनका अयोध्या नाम है,,, जहां बन रहा भव्य मंदिर है,,राम लल्ला अभी भी बाहर रखे हुए है,,,दुर्भाग्य है हिंदुस्थान के मंदिरों में पुलिस के पहरे लगे हुए है,,, यहां भी यही हाल है,,,काशी में परिवर्तन के बाद अयोध्या में फिर से राम राज आने की उम्मीद जगी है, नाव वालो से लेकर रिक्शा, व्यवसाई और रहवासी आस लगाए बैठे है कि कब राम राज वापस आएगा।  मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे ‘अयोध्या’ का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-युध्य अर्थात् ‘जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/रघुवंशी/अर्कवंशी राजाओं का राज हुआ करता था, जिसमें भगवान् श्री राम ने अवतार लिया। यह नगरी सप्त पुरियों में से एक है। श्रीरामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी , दशरथमहल , श्रीलक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट समेत अनेक मन्दिर यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं।
*भाग्यशाली तो हम लोग हैं जिनके सामने राम मंदिर की नींव रखी गई, पर सौभाग्यशाली वो हैं जो वर्षों से जिंदा है रामलला को उनका हक दिलाने में।*
अयोध्या घूमने ऑटो रिक्शा वाले 160 रुपए प्रति व्यक्ति देना पड़ा। जो अयोध्या के गली गली जाकर दर्शन कराया। पहाड़ी हनुमान का भव्य मंदिर है जहां जरूर जाना चाहिए।  शाम को खाना खाने के बाद राम के घर से निकल पड़े श्री कृष्ण जी के घर,,,,
*विश्व के खूबसूरत ताजमहल का दीदार *
बीच में विश्व के सबसे सुंदर ताजमहल का दीदार करने आगरा में रुके। आगरा में दोपहर 12 बजे दीदार करने पहुंचे। तेज ताप्ती धूप में दीदार का मजा तो खराब हुआ ही। साथ आजकल दो तरह के टिकट से लोगो में काफी नाराजगी दिखी। 50 रुपए के शुल्क पर आप बाहर से दीदार कर सकते है,,,अंदर में गर्भ गृह में जाकर देखने पर करीब 300 का टिकट अलग लेना पड़ेगा। यहां पर पीने का पानी और प्रसाधन की सुविधा भी पर्याप्त नहीं है। पीने के पानी के लिए मारामारी हो रही थी। लोगो का कहना है कि शुल्क लीजिए पर सुविधाएं जरूर दे।
*राधे कृष्णा में खोना है तो जरूर पहुंचे मथुरा वृंदावन*
यहां से हम सीधे निकल पड़े श्री कृष्ण जन्म स्थली मथुरा के लिए, जहां बिड़ला धर्मशाला में रुके और श्री कृष्ण जन्मस्थली के दर्शन किए। रात्रि विश्राम के बाद सुबह निकल पड़े श्री कृष्ण जी के वृंदावन धाम। भगवान कृष्ण के ‘बचपन के निवास’ के रूप में जाना जाने वाला वृंदावन हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। वृंदावन पूरी तरह से कृष्ण और राधा जी को समर्पित हैं। सबसे पहले गए राधा रमन मंदिर। जो वृंदावन में सबसे आधुनिक हिंदू मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है, जिन्हें राधा रमन माना जाता है, जिसका अर्थ है राधा को प्रसन्न करने वाला। राधा रमन मंदिर परिसर में गोपाल भट्ट की समाधि भी है, जो राधा रमन की मूर्ति के ठीक बगल में स्थित है। श्री रंगनाथ मंदिर भगवान विष्णु और उनकी पत्नी, लक्ष्मी को समर्पित है। श्री रंगनाथ मंदिर में भगवान नरसिंह, वेणुगोपाल और रामानुजाचार्य के साथ राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को भी प्रदर्शित किया गया है। बहुत बड़े एरिया में चारो ओर बड़े बड़े मंदिर बीच में सीने का खंभा होने के कारण खंभा वाला मंदिर भी कहलाता है।
यहां से सीधे निकल पड़े निधिवन जहां के रहस्य आज भी अनसुलझे है,,निधिवन की मान्यता है कि यहां आज भी हर रात कृष्ण-गोपियों संग रास रचाते हैं। यही कारण है की सुबह खुलने वाले निधिवन को संध्या आरती के बाद बंद कर दिया जाता है। इसके बाद निधिवन में कोई नहीं रहता है। निधिवन में दिन में रहने वाले पक्षी भी शाम होते ही इस वन को छोड़कर चले जाते है। यहां पर मेरा चश्मा बंदर ले गया था। इसी प्रकार श्री नरेंद्र श्रीवास जी का चस्मा और पिताजी श्री सीताराम श्रीवास जी का टोपी वृंदावन के अन्य मंदिर में बंदर ले गए थे।
*वृंदावन जाए तो तीन बातों का विशेष ध्यान रखें*
1/ मोबाइल, टोपी, चस्मा का न इस्तेमाल करे। बंदरो का आतंक इतना है को कब चुरांगे आपको पता ही नही चलेगा।
2/ बाके बिहारी मंदिर में यदि आपके साथ बच्चे और महिलाएं है तो न जाए यही बेहतर होगा। मंदिर के गर्भ गृह के सामने बरामदे में इतने लोगो को एक साथ भेज दिया जाता है,,जिससे चोरी, और जान जाने का खतरा बना रहता है, धक्का मुक्की इतना अधिक होता है की सामान्य लोग दर्शन तो छोड़ अपनी जान बचाने में लगे रहते है। दोबारा जाने की सोच ही नहीं सकते। पीएम श्री नरेंद्र मोदी और सीएम श्री योगी जी से निवेदन है की बांके बिहारी मंदिर की व्यवस्था को सुधारे, यहां पर रेलिंग सिस्टम कर दिया जाए भले ही घंटो बाद दर्शन मिले लेकिन सुरक्षित दर्शन मिले।
3/ यहां दोपहर लगभग 12 बजे से 3 बजे तक कई मंदिर बंद हो जाते है,,,अपना रूटीन इसी हिसाब से बनावे। प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री जी से निवेदन है की वीआईपी दर्शन के नाम पर आम लोगो के लिए रास्ता बंद कर दिया जाता है, यह बंद होना चाहिए। इसके बदले 20 लोगों के बाद एक वीआईपी को सीधे प्रवेश दिया जाना चाहिए। वृंदावन में ढंग से घुमा जाए तो महीनो में पूरा नहीं हो पाएगा,,एक दिन के हिसाब से हम लोगो ने
भव्यता से परिपूर्ण, प्रेम मंदिर देखा जो एक विशाल मंदिर है, ये “भगवान के प्रेम का मंदिर” के रूप में जाना जाता है। यह भव्य धार्मिक स्थान राधा कृष्ण के साथ-साथ सीता राम को भी समर्पित है। इसके अलाव इस्कॉन मंदिर, श्री कृष्ण बलराम मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस्कॉन वृंदावन स्वामी प्रभुपाद (इस्कॉन के संस्थापक-आचार्य) का एक सपना था कि कृष्ण और बलराम दो भाइयों के लिए भी एक मंदिर बनवाना चाहिए और वो भी उसी पवित्र शहर में जहां वे एक साथ कई सदियों पहले खेला करते थे। यहां भी नहीं जा पाए। वही अनिरुधाचार्य महराज के आश्रम भी गए। वहा उसी दिन उनका भागवत समाप्त हो गया इस लिए दर्शन नहीं मिल पाया। वृंदावन से मथुरा आकर रात्रि विश्राम के बाद सुबह 6 बजे निकल पड़े श्रीकृष्ण जी के 0 से 5 साल के बचपन का गांव गोकुल, जहां पूतना को मारा था, जहां नंद बाबा का 84 खंभों का घर आज भी है,,,वही यमुना नदी के किनारे किए गए बाल लीलाएं आज भी जीवंत लगता है। इसके बाद निकले रेवती रमण के लिए जहा पर बालू में श्री कृष्ण जी लोटे थे। वहा सभी साथी जमकर लोट लोट कर आनंद लिए। रास्ते में भोजन प्रसाद के बाद दोपहर को पहुंचे पर्वतराज गोवर्धन के परिक्रमा पर। यहां प्रति व्यक्ति 80 रुपए के ई रिक्शा पर सब लोग निकल पड़े गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा पर। गोवर्धन में तीन बातों का  रिसर्च किया जा सकता है। पहला हर साल पर्वत की ऊंचाई कम होते जा रहा है, दूसरा गोवर्धन के आसपास का पानी खारा है,,,जबकि यहा पर दूर दूर तक कोई समुद्र नही है। तीसरा बबूल के पेड़ जो पर्वत में है उसमे कांटे नही होता है और वही बबूल रोड़ के उस पार है उसमे कांटे पाए जाते है। साथ ही पूरे परिक्रमा के दौरान कुछ हिस्सा और कुछ मंदिर राजस्थान के पाले में पड़ता है। यहां से परिक्रमा पूर्ण करने के बाद हम चले  राधा रानी के गांव बरसाना,,, कृष्ण के घर जाने के बाद अगर राधा रानी के घर नहीं गए,,तो यात्रा अधूरा सा लगता,,, सो हम लोग भी चल दिए राधा महल,, जहां पर लोकल वाहन लेकर 100 रुपए प्रति व्यक्ति पहाड़ के उपर राधा जी मंदिर और महल आज भी है,,,शाम के समय यहाँ का नजारा काफी खूबसूरत होता है,,,पहाड़ी काफी खड़ी है,,,ऑटो से ना जाए,, हेवी पिकअप की गाड़ी बेहतर रहता है,,,अद्भुत है,,, यहां  का प्रसिद्ध घेवर मिठाई जो मात्र जून से अगस्त तक मिलता है,,,शुद्ध देशी घी से बनता है,,,और पूरे उत्तर प्रदेश में मथुरा वृंदावन में ही मिलता है,,,जरूर खावे,,,, हमने भी अपनी बेटी किरण श्रीवास के जन्मदिन 5/7/2023 को बरसाना में केक के बदले घेवर का स्वाद सभी साथियों को खिला कर लिया।
राधा कृष्ण का मिलन तो बस एक बहाना था,
दुनियाँ को प्यार का सही मतलब जो समझाना था।
*चित्रकूट में राम के चित्र स्पष्ट दिखेंगे*
रात में खाना खाने के बाद यहा से निकल पड़े चित्रकूट के लिए। भगवान राम ने वनवास के 11 वर्ष 11माह 11दिन चित्रकूट मे बिताये थे। चित्रकूट मन्दिरो का शहर और धार्मिक स्थल है। यह पड़ोस में ही स्थित मध्य प्रदेश के सतना ज़िले के चित्रकूट नगर से जुड़ा हुआ है। यहां पर रामघाट जहां पर भरत राम का मिलन, तुलसी दास जी को तिलक लगाया था और राम भगवान माता सीता और लक्ष्मण जी निवास किए थे। शाम के वक्त मंदाकिनी नदी का आरती और नाव में घूमना। बहुत ही जबरदस्त रहता है। पहाड़ी के अंदर गुफा में अंदर जाकर गुप्त गोदावरी का भव्य रूप देखते ही बनता है। माता अनुसुइया आश्रम में नए नए मंदिरो के नए नए रूप, विभिन्न झांकी भक्ति को और भी बढ़ा देती है। लक्ष्मण पहाड़ के साथ हनुमान धारा एक पहाड़ी पर स्थित झरना है और चित्रकूट के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक है। यह साइट विभिन्न कारणों से पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है।  पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। हनुमान धारा की चोटी से जहां भी देखेंगे आपको  दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देगी और उनके बीच में कुछ बस्तियां भी दिखाई देंगी।  कामदगिरि मंदिर , यह माना जाता है कि कामदगिरि मंदिर पहाड़ी पर स्थित है जहां भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और देवी सीता अपने वनवास के दौरान निवास करते थे। चित्रकूट के कामदगिरि मंदिर की परिक्रमा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। भरत राम मिलाप मंदिर, जानकी कुंड, स्फटिक शिला, भरत कूप, सीता रसोई आदि जगह दो दिन में घूम सकते है। प्रचलित दोहे चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर’। यहां कण कण में श्री राम के दर्शन होते है।
*मोक्ष प्राप्ति के लिए करे संगम स्नान*
यहां से खाना खाने के बाद निकल पड़े तीर्थ राज प्रयागराज। शाम हो चला था सो सभी लोग उस दिन पंडा के यहां आराम किए। दूसरे दिन सुबह कुछ लोग नाव से कुछ लोग ऑटो करके सीधे संगम पहुंचे। घंटो संगम में डुबकी लगाने के बाद लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन में लाइन लग गए। चूंकि शनिवार का दिन था, थोड़ी भीड़ ज्यादा थी। फिर भी आधे घंटे में ही दर्शन हो गया। इसके बाद गए नवग्रह मंदिर, जहां साफ सफाई और यहां विराजित मूर्तियों को देखते ही बनता है, यहां पर लक्ष्मी माता, विष्णु जी, दुर्गा माता, राम सीता और राधे कृष्ण के अलावे खाटू श्याम, गणेश जी, हनुमान मंदिर भी काफी आकर्षक और भव्य है। यहां जाए तो नवग्रह मंदिर जरूर जावे। बड़े हनुमान मंदिर, भारद्वाज आश्रम, इंदिरा गांधी म्यूजियम, शहीद चंद्र शेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद विश्वविद्यालय आदि घूम सकते है।
*51शक्तिपीठों में प्रधान है मां विंध्यवासिनी*
दोपहर खाना खाने के बाद निकल पड़े तीर्थ यात्रा के अंतिम पड़ाव शक्तिपीठ मां विंध्यवासिनी के द्वार। शाम के समय दर्शन जल्दी मिल गया। यहां भी पण्डो का आतंक है, पैसे देने पर मंदिर के गर्भ गृह में सीधे भेज देते है, गर्भ गृह में जो पंडे रहते हैं आपके हाथों से चढ़ावे के ले जाने वाले पैसों को छीन लेते है। इनसे थोड़ा बच के रहे। अभी मंदिर का जीर्णोधार हो रहा है,,,एकाध साल बाद यहां भव्य मंदिर और कारीडोर देखने को मिलेगा। जिसके लिए मान प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को साधुवाद है।
श्री गंगा जी के तट पर स्थित यह महातीर्थ शास्त्रों के द्वारा सभी शक्तिपीठों में प्रधान घोषित किया गया है। यह महातीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगातट पर स्थित है ।
इस यात्रा में आयोजन करता ननकु साहू एवं उनकी पत्नी श्रीमती मंजू साहू, संतोष बृहस्पति श्रीवास कोषाध्यक्ष श्रीवास समाज, श्री लक्ष्मी लक्ष्मीन श्रीवास, नरेंद्र मनोरमा श्रीवास, सीताराम श्रीवास, नारायण विनय श्रीवास, संतोष उमा श्रीवास, प्रकाश लछन श्रीवास, बिसाहुराम श्रीवास, मनोज ममता श्रीवास, सुखनंदन पुष्पा श्रीवास, रामसेवक गायत्री साहू, समारू साहू, कुंती साहू, भानु प्रताप साहू, सविता ठाकुर, इंदु सिंग ठाकुर, शिला सिंग ठाकुर, सावित्री ठाकुर, शकुंतला ठाकुर, रवि यादव, प्रकाश निर्णेजक, तिलक साहू,  ज्योति, किरण, रोशनी, मानसी, ओंकार, शिवांश, चिकी श्रीवास कोरबा, जांजगीर, मुंगेली, तखतपुर, मस्तूरी, बिलासपुर जिला सहित लगभग 40 सदस्यीय दल ने सकुशल दर्शन लाभ लिया।

संकलन एवं आलेख
संतोष कुमार श्रीवास

कोषाध्यक्ष श्रीवास समाज बिलासपुर संभाग

संपादक Shrinews 36garh.com

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