संतोष कुमार श्रीवास 9098156126
बिलासपुर। देवउठनी एकादशी इस साल 23 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु 5 माह की निद्रा के बाद जागेंगे. इसके बाद से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे. इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं. ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि देवउठनी एकादशी इस साल 23 नवंबर को मनाई जाएगी. माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि 5 माह की गहरी निद्रा से उठते हैं. भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाया जाता है. इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं. इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं. परम्परानुसार देव देवउठनी एकादशी में तुलसी जी विवाह किया जाता है, इस दिन उनका श्रंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है और परिक्रमा की जाती है. शाम के समय रौली से आंगन में चौक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करेंगी. रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी. पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को देर रात 11 बजकर 03 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 23 नवंबर को 09 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। इसी समय से द्वादशी तिथि शुरू होगी। इसके लिए देव उठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी।
देवउठनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी या देव उत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु अपनी चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं, इसलिए इस दिन इनकी विषेश पूजा की जाती है।
देवोत्थान एकादशी के बारे में हिंदू क्या मानते हैं?
यह भी माना जाता है कि देवोत्थान एकादशी के अगले दिन भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह किया था और इसलिए, इस दिन को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है, जहां तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु के प्रतीक काले सालिग्राम पत्थर के बीच विवाह की रस्म निभाई जाती है।
तुलसी विवाह की कथा : 1
नारद पुराण के अनुसार, एक समय दैत्यराज जलंधर के अत्याचारों से ऋषि-मुनि, देवता और मनुष्य सभी बहुत परेशान थे। वह बड़ा ही पराक्रमी और वीर था। इसके पीछे उसकी पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली पत्नी वृंदा के पुण्यों का फल था, जिससे वह पराजित नहीं होता था। उससे परेशान देवता भगवान विष्णु के पास गए और उसे हराने का उपाय पूछा। तब भगवान श्रीहरि ने वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने का उपाय सोचा। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया। जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग हो गया और जलंधर युद्ध में मारा गया। भगवान विष्णु से छले जाने तथा पति के वियोग से दुखी वृंदा ने श्रीहरि को श्राप दिया कि आपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा तथा आपको पत्नी वियोग सहना होगा। यह श्राप देने के बाद वृंदा अपने पति जलन्धर के साथ सती हो गईं जिसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने से भगवान विष्णु को बहुत ग्लानि हुई। तब उन्होंने वृंदा को आशीष दिया कि वह तुलसी स्वरुप में सदैव उनके साथ रहेगी। उन्होंने कहा कि कार्तिक शुक्ल एकादशी को जो भी शालिग्राम स्वरुप में उनका विवाह तुलसी से कराएगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। तब से तुलसी विवाह होने लगा।
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा : 2
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु को नाराज होकर श्राप दे दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओ। जिसके बाद इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया और तुलसी से विवाह किया। तभी से शालीग्राम और तुलसी के विवाह को एक त्योहार के तौर पर मनाया जाता है। माता तुलसी को माता लक्ष्मी का भी अवतार माना जाता है।