चलो बुलावा आया है,,,,मातारानी के दर्शन करने नौ दिन तक कहां कहां जाएं
संतोष कुमार श्रीवास 9098156126
बिलासपुर। शक्ति की भक्ति और आराधना के लिए पूरा शहर सज चुका है। शहर के कई स्थान ऐसे है जहां सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर ही तीन विशेष पूजा पाठ एवं भव्य पंडाल बनाए जाते है। शहर एवम आसपास कुछ महत्वपूर्ण मंदिर जहां प्रतिदिन जाकर दर्शन किया जा सकता है।
मां काली मंदिर तिफरा में महंत रामसुंदर दास ने किया दर्शन
रामसुंदर दास महंत विधायक एवं गो सेवा आयोग अध्यक्ष ने आज काली मंदिर तिफरा के दौरान उन्होंने बताया कि आज नवरात्रि का प्रथम दिवस है। माता का दर्शन करने आया हु साथ ही काली मंदिर महंत से मुलाकात बहुत ही सुखद रहा। उन्होंने मंदिर के संबंध में कहा की महंत जी कार्यकाल में बहुत सुंदर स्वरूप दे पाए। मंदिर के ऊपर कुछ अधूरे निर्माण के लिए भी चर्चा किए।
काली मंदिर तिफरा : प्रथम दिवस यदि आप शहर के आसपास रहते है तो रायपुर मार्ग में स्थित काली मंदिर तिफरा जा सकते है, यहां पर विराजित माता काली भव्य रूप में विराजति है तथा सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाली है।
मां महामाया मंदिर बैमा नगोई : दूसरे दिन मां महामया मंदिर बैमा-नगोई जो शक्ति का स्वरूपहै, यहां विराजमान है। यहां पर गिरनारी बाबा जी पूजा पाठ किया करते थे। यहां की प्रसिद्धि भी दूर-दूर तक है। बिलासपुर के नगोई गांव में विराजी मां वैष्णों देवी हर किसी की मनोकामना पूरी करती हैं. ये मंदिर शर्मा परिवार ने तैयार किया है. जम्मू के कारीगरों ने मंदिर को आकार दिया. हर दिन यहां 100 से 150 श्रद्धालु पहुंचते हैं. लेकिन नवरात्रि में यहां पर भीड़ कुछ ज्यादा ही रहता है।
मरीमाई मंदिर रेलवे परिक्षेत्र: तीसरे दिन रेलवे स्टेशन बिलासपुर के पास मरीमाई मंदिर है, यहां नवरात्रि में सभी दिन भक्तों की भीड़ रहता है। यहां पर एक सुंदर तालाब भी है।
बगदाई मंदिर खमतराई :-चौथे दिन जाएं बगदाई मंदिर, शहर से लगे खमतराई में वनदेवी का एक अनोखा मंदिर है, जहां माता को नारियल, फूल, पूजा सामग्री का चढ़ावा नहीं चढ़ाया जाता। बल्कि यहां प्रसाद के रूप में कंकड़ व पत्थर (स्टोन) का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। इस अनोखी परंपरा का पालन सदियों से किया जा रहा है। खमतराई बगदाई मंदिर में वनदेवी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि वनदेवी के दरबार में मन्नत पूरी होने के लिए चढ़ावे के रूप में पांच पत्थर चढ़ाया जाता है।
डिडिनेश्वरी देवी मंदिर मल्हार : पांचवें दिन जाएं, मल्हार, शुद्ध काले ग्रेनाइड से बनी मां डिडनेश्वरी की प्रतिमा लोगों की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि देवी के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। माता अपने दरबार से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती। मल्हार में पुरातत्व के अनेक मंदिरों के अवशेष हैं। बिलासपुर से 40 किमी दूर यह जोधरा मार्ग पर मौजूद मल्हार गांव डिडनेश्वरी देवी के कारण प्रसिद्व है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 10 वीं-11 वीं ई. में हुआ था। शुद्व काले ग्रेनाइड से बना है। शुद्ध काले ग्रेनाइड से बनी प्रतिमा से अनोखी ध्वनी निकलती है।
मरही माता मंदिर भनवारटंक : छठे दिन जाएं मरहीमाता मंदिर, घनघोर जंगल के बीच में स्थित है मरही माता का मंदिर की स्थापना ब्रिटिश शासन में किया गया था सन 17 जुलाई 1981 मे मंदिर का निर्माण किया गया है माता का मुर्ति नीम पेड के नीम स्थित है मरही माता के दर्शन के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्त आते हैं और पूजा पूजा अर्चना करके अपनी मनोकामना मानते हैं और चैत्र नवरात्रि तथा रामनवमी नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं और चुनरी नारियल तथा कागज में अपनी मनोकामना को लिखकर पेडो पर लाटकाते है। मनोकामना पूरी हो जाने पर भक्त ज्योति कलश और बकरे की बलि देने की प्रथा है बताया जाता है की भक्तो की मनोकामना पूरी होने पर चुनरी बंधे नारियल को फोड़ के प्रसाद के रूप में सभी को दिया जाता है।
मां महामाया मंदिर रतनपुर : विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया मंदिर सप्तमी को जाना अति उत्तम और फलदायी माना गया है। शहर से रतनपुर तक पदयात्रा कर माता रानी का दर्शन करना एक सुखद और फलदायी होता है। रास्ते भर जगह-जगह श्रद्धालुओं का स्वागत, फल, भोग प्रसाद वितरण होते देखना और डीजे साउंड के साथ भक्तों की टोली का रतनपुर पैदल जाना, वाकई अलग ही अनुभूति होता है। कहा जाता है कि देवी महामाया का पहला अभिषेक और पूजा-अर्चना कलिंग के महाराज रत्नदेव ने 1050 में रतनपुर में की थी। आज भी यहां उनके किलों के अवशेष देखे जा सकते हैं। ऐतिहासिक,धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से यह प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है।
आठवें और नौवें दिन करें शहर के विभिन्न पंडालों में स्थापित माता के दर्शन, भव्य झांकी का परिवार सहित दर्शन करें। शहर के प्रमुख पंडालों में मध्यनगरी चौक, जूना बिलासपुर, सीएमडी चौक, तेलीपारा, शिवटाकीज चौक, तारबाहर, ब्रम्हाकुमारी जीवंत झांकी सहित कई जगह है जहां देखते ही बनता है।
देवताओं ने भी शारदीय नवरात्रि में थी आदिशक्ति की आराधना
शारदीय नवरात्रि देवी पूूजा को समर्पित एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है, जो शरद ऋतु में मनाया जाता है। हिन्दू परम्परा में नवरात्रि का त्योहार, वर्ष में दो बार प्रमुख रूप से मनाया जाता है : 1. चैत्र मास में वासन्तिक नवरात्रि तथा 2. आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि। शारदीय नवरात्रि के उपरान्त दशमी तिथि को विजयदशमी (दशहरा) पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि का महा
त्म्य सर्वोपरि इसलिये है कि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर और आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी और उनकी पुकार सुनकर देवी माँ काआविर्भाव हुआ। उनके प्राकट्य से दैत्यों के सँहार करने पर देवी माँ की स्तुति देवताओं ने की थी। उसी पावन स्मृति में शारदीय नवरात्रि का महोत्सव मनाया जाता है।
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