आईए मिलते है गांव के एक बच्ची जिनका बैल के हमले से आंख की रोशनी खोते खोते बची… पर हार नहीं मानी और बन गई आई स्पेशलिस्ट
संतोष कुमार श्रीवास मो 9098156126
बिलासपुर। एक ऐसे डॉक्टर से जिन्होंने जशपुर (नागलोक)के एक छोटे से गांव घोलेंग से निकलकर सिद्ध किया कि गरीबी अभिशाप नहीं वरदान है… जशपुर जिले के एक छोटे से गांव घोलेंग में कृषक दंपत्ती के घर जन्मी बच्ची,अपने मां-बाप के साथ खेत गई हुई थी, बैल के अचानक हमले से उनके दाएं आंख में चोट लग गई। इसे देख मां-बाप और स्वयं बच्ची दहशत में आ गई कि कहीं आंख की रोशनी न चली जाए, पर ऐसा नहीं था प्रभु को कुछ और ही मंजूर था। बच्ची ने उसी दिन से ठान ली कि मैं पढ़ाई करूंगी और आंख का ही डॉक्टर बन कर दिखाउंगी।
किसी ने कमाल की बातें कही है-
बीतेगा ये दौर और वो दौर भी बीत जायेगा,
संघर्ष की इस आंधी के बाद एक नया दौर आएगा,
चलते रहना रास्ते पर बिना डगमगाए,
एक दिन ये जमाना तुम्हारे गीत गायेगा…
इन पंक्ति को सत्यार्थ करने निकली डा. ममता मिंज ने जशपुर से शुरूआती पढ़ाई कर रायपुर के मेडिकल कालेज में दाखिल ली। उस समय प्रदेश में मेडिकल कालेज भी गिने चुने थे। छोटे से जगह से बड़े शहर में बिना गाइड लाइन के पढ़ाई करना काफी चुनौती पूर्ण होता है। पिता के दृढ़ इच्छाशक्ति ने वित्तीय कठिनाईयां आने नहीं दी। पिता पढ़े-लिखे कृषक थे वे एलएलबी की पढ़ाई भी किए है। उसके बाद भी कृषि करना नहीं छोड़े। पिता का भरपूर सहयोग रहा कि वे गुजरात, राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़ में पढ़ाई कर फेको स्पेशलिस्ट बन सकी।
आज भी मात्र 2000 रुपए में मोतियाबिंद का आपरेशन
डा. ममता मिंज ने बताया कि सरकार की योजना एनपीसीबी (नेशनल प्रोग्राम फार कंट्रोल ब्लाइंडनेस) के तहत मात्र 2000 के मिनीमम शुल्क में गरीब परिवारों को मोतियाबिंद जैसे खर्चीले आपरेशन से राहत पहुंचा रही है। जानकारी के अभाव में लोग हजारों रूपए खर्च कर मोतियाबिंद का आपरेशन करा रहे है। शहर कई नेत्रालयों में मोतियाबिंद ऑपरेशन के नाम पर 15 हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक ले रहे है।
30 हजार मोतियाबिंद का सफल आपरेशन
डा. ममता मिंज ने बताया कि आॅप्थेल्मोलॉजी में स्पेशल पढ़ाई के बाद हमने लगभग 30 हजार से भी अधिक सफल आॅपरेशन किए है। इस दौरान कई गरीब परिवार का नि:शुल्क आॅपरेशन भी किए। गरीबों के लिए पैसा कोई बाधा न बने इसलिए सरकार की योजना के माध्यम से कम से कम पैसों में आपरेशन किए है।
प्यार में लैग्वेज कोई रूकावट नहीं हो सकती
डा. ममता मिंज ने अपने साथ पढ़ाई कर रहे त्रिपुरा के डा. मिल्टन देव वर्मा से शादी की है। इसके पीछे भी जबर्दस्त रोमांचक कहानी रही है। पति डा. वर्मा त्रिपुरा के मूल निवासी है, वहां हिंदी नहीं के बतौर बोली जाती है। त्रिपुरा में जातिवाद का भी वर्चस्व है। इन दोनों तरह की चुनौतियों से निपटते हुए जब विचारधारा मिला, वे दोनों शादी के लिए तैयार हो गए। वे बताती है कि शादी हम दोनों की विचारधारा के कारण हुई है। दोनों गरीब परिवार से आते है और संघर्ष कर इस मुकाम तक पहुंचे है। साथ में रायपुर और बिलासपुर में पढ़ाई किए एक-दूसरे को समझे फिर परिवार के सहमति से शादी कर लिए। पति डा. मिल्टन देव वर्मा सिम्स बिलासपुर में पदस्थ है।
जाने, क्या है फेको पद्धति
फेकोइमल्सीफिकेशन, या फेको, मोतियाबिंद सर्जरी की विधि है जिसमें आंख के आंतरिक लेंस को अल्ट्रासोनिक ऊर्जा का उपयोग करके इमल्सीकृत किया जाता है और इंट्राओकुलर लेंस प्रत्यारोपण, या आईओएल के साथ बदल दिया जाता है। मोतियाबिंद आॅपरेशन में बिना इंजेक्शन, बिना टांका के लेजर द्वारा सफल आॅपरेशन किया जाता है। साथ ही मरीज को तुरंत छुट्टी भी दे दिया जाता है।
आत्याधुनिक मशीन से होता है इलाज
संघर्ष के पायदान में डा. ममता मिंज ने एमएस आप्थेलमोजाली में करने के बाद परिवार के बिना सहयोग के आज बिलासपुर जैसे शहर में दो-दो हॉस्पिटल में आंख के जांच के लिए अत्याधुनिक मशीन स्थापित किए है। शहर के मार्क हॉस्पिटल सरकंडा और सिम्स के सामने ममता नेत्रालय में डा. मिंज उपलब्ध रहती है।
आज के युवाओं के लिए संदेश
डा. ममता मिंज आज के युवाओं के लिए कहती है कि गरीबी अभिषाप नहीं वरदान है… लोग अपने आप को गरीब मानकर संघर्ष करना ही छोड़ देते है। हर कामयाबी के पीछे उनकी संघर्ष होता है। आज के जनरेशन में युवा एक लक्ष्य बनाकर नहीं चल रहे है। जिसके कारण उन्हें भटकना पड़ रहा है। जब तक लक्ष्य बनाकर नहीं चलेंगे वे भटकते रहेंगे। यदि कोई तुम्हारा बुरा चाह ता है तो उसे जलाने के लिए तरक्की की जाए क्योंकि हर दुश्मन और बुरा चाहने वाले लोग तरक्की से जलते है। इस दुनिया में वहीं आगे बढ़ेगा जो चुनौि तयों से लड़ेगा।
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