संतोष कुमार श्रीवास 9098156126
बिलासपुर।पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि-विधान से अनुष्ठान किए जाते हैं. पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है. शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध के अनुष्ठानों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए. इस बार पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होंगे. देश की प्रमुख जगहों जैसे प्रगराज, गया जी, हरिद्वार, आदि जाकर पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं.
इन कार्यों से नाराज होते हैं पितर
श्राद्ध कर्म करने वाले सदस्य को पितृपक्ष में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. श्राद्ध कर्म हमेशा दिन में करें. सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना अशुभ माना जाता है. इन दिनों में लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग नहीं खाना चाहिए. जानवरों या पक्षी को सताना या परेशान भी नहीं करना है.
जिस तिथि में पूर्वज की मृत्यु हो, उस तिथि को करे तर्पण
पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से अश्विन माह की अमावस्या तक चलता है, इसे सर्व पितृ अमावस्या और महालय अमावस्या कहते हैं. पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है. जिस तिथि को पितर की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि को उस पितर के नाम से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म किया जाता है.
मृत्यु के 13वें दिन करे तेरहवीं
गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद होने वाले कार्यक्रमों जैसे कि श्राद्ध और तेरहवीं का भी वर्णन मिलता है. हिंदू धर्म में परिजन की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार का विधान है और इसके बाद 13 दिनों तक मृतक के निमित्त पिंड दान किए जाते हैं. वहीं तेरहवें दिन मृतक का तेरहवीं संस्कार किया जाता है.