तीन भाई हुए और तीनों जन्म से अंधे, पर हार नहीं मानी और संघर्ष कर पाई सफलता

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हम ऐसे शख्स से आपको मिलाएंगे जिन्होंने अपनी काबिलियत से मिशाल कायम किया है

संपादक-सन्तोष कुमार श्रीवास मो 9098156126

हजार बर्क गिरे लाख आंधियां उठे,
वो फूल खिल के रहेंगे, जो खिलने वाले है,,,
शाहीर लुधियानवी जी के कलम को आज सिद्ध किया है गरीब आदिवासी का बेटा शिव धुर्वे ने,,, होनहार युवक शिव धुर्वे जी कहते है की गरीब पैदा होना गुनाह तो नही पर गरीब मर जाना गुनाह है। आइए हम मिलते है एक ऐसे शख्स से जो जन्म से गरीब होने के साथ साथ जन्म से अंधे है, पर इन्होंने संयम और संघर्ष से ऐसा कर दिखाया, कि कई लोगो के आंख सलामत होते हुए भी नहीं कर पाते है।
एक गरीब परिवार के सामने सबसे चुनौती होती है कि उसे दो वक्त की रोटी नसीब हो जाए,,,हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो पाता है, फिर भी विषम परिस्थिति को अपने भाग्य का हिस्सा मानकर दंपति खुशी खुशी जीवन व्यतीत कर लेता है, मगर यदि दपती के एक नही, दो नही, तीन संतान हो और तीनो अंधा पैदा हो जाए। चौकिए मत। यह कोई फिल्मी कहानी नही है।
मां बाप ताना सुन सुन कर आत्महत्या को हो गए थे मजबूर

हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ प्रांत के कबीरधाम जिला के बोडला तहसील के एक छोटे से गांव घोंघा का, जहां जगदीश धुर्वे और जगबाई धुर्वे पुश्तैनी मकान में मजदूरी कर जिंदगी गुजार रहे थे। जिनके बड़े बेटे शिव धुर्वे ने न केवल संघर्ष कर एक मुकाम को हासिल किया, बल्कि अपने दोनो जन्मांध भाईयो को अच्छे मुकाम हासिल करने बीड़ा उठाया है। गांव के आदिवासी कल्चर से निकल कर देश के राजधानी तक का अकेले सफर कर आज अपने परिवार का मजबूत कंघा बना हुआ है साथ ताने मारने वालों को गहरा तमाचा दिया है।
शिव धुर्वे बताते है की मेरे माता पिता को मेरे जन्म पर बहुत खुशी था। पर उस खुशी में एक साल बाद ग्रहण लगने लगा। मेरे कुछ हरकतों से 1 वर्ष बाद उनको लगने लगा कि अब हमारे बेटे की आंख की रोशनी नहीं है मां बाप इलाज के लिए दर-दर की भटकते लगा। बैगा, भूमिया सहित बिलासपुर और रायपुर के डाक्टरों ने केवल चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली का रास्ता ही बताया। रही सही कसर स्थानीय नेताओं ने पूरी कर दी। मतलब समझ गए होंगे केवल आस्वशन मिला।

कड़ा फैसला लेकर आज भी संघर्ष कर रहे मां बाप

घर में जब कोई मांगने वाला भिखारी भीख मांगने आता था,,तब दंपती का सीना फट सा जाता था, रो रो कर बुरा हाल हो जाता था, उपर से गांव वाले और रिश्तेदारों का ताना जरूर सुनने को मिलता था। पिछले जन्म में बुरा किए होंगे तो आज इनके तीनों बच्चे अंधे पैदा हुए है। गरीबी की मार हर कोई सह सकता है पर जो व्यक्ति पहले से घाव से पीड़ित हो और उसे कुरेदा जाए। यह हर कोई कैसे सह सकता है। मां बाप के मन भी कई तरह के विचार आए। पर दोनों ने हार नहीं मानी और कड़ा फैसला लिया। बच्चे का एडमिशन गांव के स्कूल में कराया। यहां भी शिक्षक ने कुछ दिनों बाद हाथ खड़े कर दिए। फिर 2006 में एडमिशन कराने रायपुर ले गए। वहा स्थान रिक्त नही होने के कारण खाली हाथ लौटना पड़ा। 2007 में दो ब्लाइंड भाईयो को भर्ती कराने दौड़ लगाना शुरू किया। पर इस बार आधी अधूरी सफलता मिली, बड़े का एडमिशन हो सकता था, मंझले के लिए सीट खाली नही था। बड़े भाई ने कहा मैं अकेले पड़ कर क्या करूंगा, मैं तभी एडमिशन लूंगा जब दोनो का एडमिशन होगा। सन 2008 में दोनो भाईयो का एडमिशन रायपुर के शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधितर्थ विद्यालय में हुआ। गांव के आदिवासी समाज से निकलकर रायपुर में 12 वी तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम में किए।

दिल्ली दिलवालो की

श्री शिव ध्रुवे जी बताते है मैं जब दिल्ली दिलवालो की है। यहां अच्छे लोग भी है तो बुरे लोग भी। जब मेरा एडमिशन सत्यवती विवि दिल्ली में एडमिशन हुआ सबसे बड़ी चुनौती रहने खाने की रही। मैं अकेले तो दिल्ली पहुंच गया। विश्वविद्यालय में रहने को हॉस्टल नही मिला चुकी हाईएस्ट परसेंट वाले बच्चो को सरकारी हॉस्टल में पहले ही जगह दे दिया जाता है। मैंने किसी के सलाह पर लगभग 100 किमी दूर एनजीओ के नाम पर संचालित हॉस्टल में रूम लिया। प्रतिदिन 100 किमी अप और डाउन करना साथ में खाने का व्यवस्था करना, दृष्टिहीन तो क्या सामान्य नागरिक के लिए भी काफी कठिन होता है, आने जाने में लेट लतीफी से कई दिनों तक बिना खाना खाए सोना पड़ता था। हॉस्टल भी ऐसा था की एक रूम में 30से 40 लोगों को ठूंस दिया जाता था। शोर गुल के बीच पढ़ाई करना भी चुनौती से कम नहीं था। दुख लगता था जब कोई दानदाता जहां हम रहते थे उस एनजीओ को दान देने आते थे, और हम सभी को भिखारी बनाकर उनके सामने पेश किया जाता था। दिल्ली में रास्ता और बस मार्ग कठिन तो है पर लोग अच्छे है,,,कुछ दूर तक छोड़ भी देते थे। एक बार रास्ता बताने एक युवक अपने बाइक पर बिठा लूटपाट करने की कोशिश भी किया। चिल्लाया तो वही पर छोड़ कर भाग गया।

कुपोषण का हुआ शिकार

अकेले रहना और उपर से हॉस्टल दूर रहना वह भी एक दृष्टिहीन बालक के लिए। मुझे कई दिनों तक खाना नसीब नहीं होता था। मैं भूखे ही सो जाता था। कई दिन सिर्फ चने खा कर दिन गुजारा करता था। मां बाप के पास पैसे नहीं थे की मैं हर चीज के लिए उनसे मांग करता। कुपोषण के कारण जब ज्यादा तबीयत खराब हुआ तो मैं वापस गांव बोडला आ गया। लेकिन पढ़ाई जारी रखा।
दोस्तों से उधार लेकर किया पढ़ाई

दोस्तो से थोड़े थोड़े पैसे उधार लेता था, जिससे पढ़ाई के लिए एंड्राइड मोबाइल और कंप्यूटर खरीदा। जिससे मुझे काफी मदद मिली और मैं कोटोनाकाल में भी पढ़ाई जारी रख सका। वेतन मिलने पर सबसे पहले उधारी चुका रहा हूं,,, हर माह अपने वेतन से घर का खर्च, भाईयो का पढ़ाई और बाकी जो बचाता है उसमे थोड़े थोड़े का उधारी चुका रहा हूं। अभी वर्तमान में अंबिकापुर के बैंक में क्लर्क की नौकरी कर हूं।

सरकार ध्यान दे

शिव जी कहते है की आज सरकार को चाहिए प्रत्येक स्कूल में समावेशी एजुकेशन वृहद तरीके से शुरू करना चाहिए। ताकि गांव गांव में इसे अभिशाप न समझे और अपने बच्चे को पढ़ा लिखा कर आफिसर बना सके। कंप्यूटर या लैपटॉप हर ब्लाइंड बच्चे को शुरू से मिलना चाहिए। विशेष शिक्षक होना चाहिए जो सामान्य और ब्लाइंड बच्चो के एजुकेशन दे सके। एक प्रकार स्क्रीन और रीडिंग सॉफ्टवेयर (एनवीडीए) सभी लैपटॉप पर होना ही चाहिए।

जल्द प्रकाशित होगा बुक

श्री शिव धुर्वे जी अपनी इस कठिन यात्रा और लोगो के अशिक्षा पर एक बुक लिखना शुरू दिए है, वे हिंदी और इंग्लिश भाषा में अलग अलग प्रकाशित कराएंगे। इसके प्रकाशन के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्मों के कैरियर पर भी पुस्तक लिखने विचार बना चुके है।

आप भी इस तरह के लोगो का तन मन और धन से सहयोग कर देश का मान बढ़ा सकते है। श्री शिव धुर्वे के पिता जी श्री जगदीश धुर्वे से मो 6265409186 या संपादक संतोष कुमार श्रीवास मो 9098156126 से भी चर्चा कर सकते है।

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